बच्चों में आटिज्म एक कठिन चुनौती

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(लेटस हेल्प इंडिया की इस दिशा में एक सार्थक पहल )

एक्सक्लूसिव न्यूज़(जनमत):- आटिज्म एक अवस्था है जिसमे बच्चों का मानसिक विकास आमतौर पर थोड़ी देर से होता है। आटिज्म काफी हद तक बच्चों की स्पीच, किसी भी कार्य को करने और सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित करता है। उनका अलग व्यवहार और लोगों से मिलने-जुलने में होने वाली झिझक उन्हें समाज से अलग कर देती है। इन बच्चों की एक अलग दुनिया बन जाती है। अगर आटिज्म का सही समय पर इलाज न किया जाये तो, इससे पीड़ित बच्चों को सामान्य जीवन जीने में कई तरह की समस्याएं आती है। एक आंकड़े के अनुसार आज भारत में 100 में से 1 बच्चे को आटिज्म है और यह संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। आटिज्म होने के क्या कारण है? यह शोध का विषय बन गया है। अमेरिका जैसे विकसित देश में तो यह समस्या और भी विकट है।

जहां हर 42 में से 1 लड़के को और 189 में से 1 लड़की को आटिज्म है। आटिज्म होने के पीछे बहुत सी थ्योरी है। परन्तु कोई भी थ्योरी प्रामाणिक नहीं है,  इसलिए कुछ नहीं कहा जा सकता की क्या करने से इसे रोका जा सकता है। आटिज्म के इलाज के लिए सबसे जरुरी चीज है जागरूकता।  जागरूकता के आभाव में माता-पिता काफी समय तक समझ ही नहीं पाते की बच्चे को क्या समस्या है। इतना ही नहीं 80 प्रतिशत बच्चों के डॉक्टर्स तक नहीं जानते की आटिज्म क्या है। स्कूल में टीचर्स तक भी कभी समझ नहीं पाते की बच्चा आखिर क्यों कमजोर है। जागरूकता के आभाव में समाज कभी आटिज्म से प्रभावित लोगों को समझ नहीं पाता और  उनसे दुरी बना लेता है। आज हमारे देश में आटिज्म के इलाज के नाम पर सैकड़ों थेरेपी सेंटर खुल चुके है जो 30 से 45 मिनट थेरेपी के 500 से 1000 रुपेय लेते है। परन्तु बच्चा ठीक हो जायेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। इनमे से सिर्फ कुछ ही सेंटर है, जहां पढ़े-लिखे और अनुभवी थेरेपिस्ट और डॉक्टर्स होते है। जो वास्तव में बच्चों को सामान्य जीवन जीने योग्य बना पाते है।

महानगरों की तुलना में छोटे शहरों और गावों में तो स्थिति और भी विकट है। वहां जागरूकता के साथ-साथ इलाज की भी कमी है। सरकारी हॉस्पिटल और संस्थाए अभी इतनी सक्षम नहीं है कि इन जगहों पर सही इलाज उपलब्ध करा सके। जिसकी वजह से सैंकड़ों बच्चे बिना इलाज के जीवन भर परेशानियों से जूझते रहते है। फिलहाल जब तक इस पर होने वाले शोध से कुछ पता नहीं चलता है, तब तक आटिज्म पीड़ित बच्चों को थेरेपी और मल्टीविटामिन्स पर ही निर्भर रहना होगा। जब सरकार की तरफ से कोई प्रयास होता नहीं दिखता है और न ही समाज इस मुद्दे पर सहयोग करता दिखता है, तो ऐसे में हर माता-पिता का एक ही प्रश्न होता है, कि हमारे बाद हमारे बच्चों का क्या होगा ? ऐसे ही आटिज्म जागरूकता और उसके इलाज से संबंधित विषयों पर ‘लेटस हेल्प इंडिया’ संस्था विगत 3 वर्षों से काम कर रही है। लेटस हेल्प इंडिया संस्था ने सोशल मीडिया के माध्यम से अब तक हजारों माता-पिता, डॉक्टर्स और थेरेपिस्ट को जोड़ा है।

ताकि वह आटिज्म के इलाज से संबंधी जानकारी प्राप्त कर सके। आज करीब 350 से ज्यादा माता-पिता और थेरेपिस्ट व्हाट्सप्प ग्रुप के माध्यम से जुड़े हुए है और करीब 5000 लोग फेसबुक के माध्यम से जुड़े है। जोकि दिल्ली एनसीआर, चंडीगढ़, बंगलुरु,, मुंबई आदि राज्यों के रहने वाले है। इन व्हाट्सप्प ग्रुप के माध्यम से माता-पिता अपने-अपने अनुभवों को एक दूसरे से शेयर करते है। इतना ही नहीं महीने में एक बार सब माता-पिता मीटिंग भी करते है। सब भावनात्मक रूप से एक दूसरे को सहयोग देते है और सही थेरेपिस्ट और इलाज चुनने में मदद भी करते है। इसके साथ ही जमीनी स्तर पर ‘लेटस हेल्प इंडिया’ संस्था जागरूकता रैली, सेमिनार, स्पोर्ट्स एवं पेरेंट्स मीटिंग के माध्यम से विभिन्न समस्याओं पर काम कर रही है। यह संस्था अपनी वेबसाइट (www.letshelpindia.in) के द्वारा आटिज्म से जुड़ी जानकारी, थेरेपिस्ट, डॉक्टर्स और स्कूल संबंधी जानकारी प्रदान करती है। लेटस हेल्प इंडिया’ का प्रयास है कि आटिज्म बच्चों को एक सामान्य जीवन जीने के लिए आवश्यक सुविधाएं मिल सके, जैसे कि सही इलाज, स्कूल में एडमिशन, फीस में छूठ, भविष्य में नौकरी या जीवनुपार्जन में सहयोग। समाज को भी इनके प्रति जागरूक होना होगा और समझना होगा कि आखिर उन्हें ऐसे बच्चों के साथ कैसे पेश आना चाहिए। यदि आप भी इस संस्था से जुड़ कर इन बच्चो के लिए कुछ काम करना चाहते है तो आप इस नंबर 9911538884 पर संपर्क कर सकते हैं।

Posted By:- Amitabh Chaubey