काल के कपाल पर अमिट …”अटल”

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जनमत :- मै जी भर जिया, मै मन से मरुँ…….लौटकर आऊंगा , कूच से क्यूँ डरूं…. यह एक मन की व्यथा है जो किसी और की नहीं बल्कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपाई जी के द्वारा रचित है. जिन्होंने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाया और  देश को अग्रणी देशो की सूची में लाकर खड़ा कर दिया.  पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  का जन्म 25 दिसंबर  1924  को हुआ था. अटल जी एक प्रखर नेता के साथ ही एक कवि, पत्रकार और एक ओजस्वी वक्ता भी थे . जिन्होंने एक राजनेता के साथ ही एक कवि के रूप में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी थी . वो पहले 16 मई से 1 जून 1996  और  फिर 19  मार्च 1998  से  मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।

वे  भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वाले महापुरुषों में से एक थे.  वे जीवन भर भारतीय राजनीती में सक्रिय थे उनके द्वारा राष्ट्रधर्म  और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। उन्होंने  जीवन  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के रूप में शुरू किया. इसी के साथ ही  उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से पूरा भी किया । उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से अपनी सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे।इसके बावजूद कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की। इससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है। वाजपेयी  राजग सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री के रूप में 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। दिनांक – 16.08.2018  को सांय 05:05 मिनट पर उनका निधन हो गया. पूर्व प्रधानमंत्री पिछले नौ हफ्ते से उनकी तबियत ख़राब चल रही थी और 36 घंटे से वोह ज़िन्दगी और मौत के बीच जूझ रहे थे … जिसके बाद उनके सांसे थम गयी. भारतीय राजनीती का यह सूरज अस्त हो गया … जिसकी कमी हमेशा ही खलती रहेगी.