देश/विदेश (जनमत) :- देश की सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया कि वह संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र का पक्ष सुने बगैर कोई आदेश नहीं जारी किया जा सकता है. प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इस कानून को चुनौती देने वाली 143 याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया और सभी उच्च न्यायालयों को इस मामले पर फैसला होने तक सीएए को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई से रोक दिया। न्यायालय ने इस कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जवाब देने के लिये केंद्र को चार सप्ताह का वक्त देते हुए कहा कि इस मामले की सुनवाई पांच सदस्यीय संविधान पीठ करेगी।
न्यायालय ने कहा कि असम में नागरिकता के लिए पहले कटऑफ की तारीख 24 मार्च, 1971 थी और सीएए के तहत इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर, 2014 तक कर दिया गया है।पीठ ने कहा कि असम और त्रिपुरा से संबंधित याचिकाओं पर अलग से विचार किया जाएगा क्योंकि इन दो राज्यों की सीएए को लेकर परेशानी देश के अन्य हिस्से से अलग है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि सीएए के अमल और राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनपीआर) के कार्यक्रम पर रोक लगाने के मुद्दे पर केंद्र का पक्ष सुने बगैर एक पक्षीय आदेश नहीं दिया जाएगा।
Posted By:- Ankush Pal