सपा-बसपा गठबंधन का भविष्य हुआ “अंधकारमय”….

राजनीति

राजनीति (जनमत) :- लोकसभा चुनाव से पहले दो दशक तक आमने-सामने रहे सपा-बसपा एक साथ आए तो इसे राजनीति की बड़ी घटना के तौर पर देखा गया। नतीजों ने साबित किया कि मजबूत जातीय गणित के बावजूद इनकी केमिस्ट्री गड़बड़ा गई। दलितों- पिछड़ों की सोशल इंजीनियरिंग जमीन पर नहीं उतर सकी। हाथी के साथ बावजूद साइकिल की धीमी रफ्तार से गठबंधन के भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं।

2014 की मोदी लहर में परिवार के गढ़ बचाने वाली सपा को बदायूं, कन्नौज व फिरोजाबाद में तगड़ा झटका लगा है।बसपा-सपा व रालोद ने क्रमश: 38, 37 व 3 सीटों पर चुनाव लड़ा। जातीय गणित को देखते हुए उसकी सफलता को लेकर बड़े कयास लगाए जा रहे थे। बसपा शून्य से 12 के आंकड़े पर पहुंच गई लेकिन सपा-रालोद का प्रदर्शन खराब रहा। रालोद अध्यक्ष अजित सिंह भी मुजफ्फरनगर  व उनके बेटे जयंत चौधरी बागपत से चुनाव हार गए।आपको बता दे की भाजपा को रोकने के लिए अखिलेश यादव और मायावती ने राष्ट्रीय लोकदल को भी साथ लिया। हालाँकि नतीजों ने इस गठबंधन के भविष्य पर बड़ा सवाल उठा दिया है, अब देखना यह होगा की   सपा बसपा की रहें जुदा होती है या फिर ये साथ बना रहता है, ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.