ब्रम्हमुहूर्त में डंका बजते शुभारंभ हुई विश्व प्रसिद्ध 84 कोसी परिक्रमा

ब्रम्हमुहूर्त में डंका बजते शुभारंभ हुई विश्व प्रसिद्ध 84 कोसी परिक्रमा

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सीतापुर (जनमत ) :- यूपी के जनपद सीतापुर में 88 हजार ऋषि-मुनियों की तपोस्थली नैमिषारण्य में आज मंगलवार को ब्रह्म मुहूर्त में डंका बजते ही प्रसिद्ध 84 कोसी परिक्रमा का शुभारंभ हो गाया। रथ, पालकी, हाथी, घोड़ा, वाहनों के अलावा बड़ी संख्या में परिक्रमार्थी पैदल ही राम नाम की धुन पर थिरकते हुए धर्म यात्रा पर रवाना हुये। रामादल का पहला पड़ाव कोरौना में है। श्रद्धालुओं का मानना है कि 15 दिनों की पावन परिक्रमा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। परिक्रमा में 11 पड़ाव हैं। अंतिम पड़ाव मिश्रिख पहुँचकर परिक्रमा का समापन होगा। परिक्रमा में शामिल होने देश भर से श्रद्धालुओं का आगमन जारी है। भजन-कीर्तन करते श्रद्धालुनैमिष में आस्था के अनगिनत रंग बिखेर रहे हैं।


सतयुग में महर्षि दधीचि ने सबसे पहले समस्त देवी-देवताओं और तीर्थों का दर्शन पूजन करने और विश्व कल्याण के उद्देश्य से 84 कोसी परिक्रमा की थी। रावण का वध करने के बाद प्रभु श्रीराम भी 84 कोसी परिक्रमा करने यहाँ आए थे। हर साल फाल्गुन माह की प्रतिपदा से 84 कोसी धर्म यात्रा का शुभारंभ डंके की ध्वनि के साथ होता है। प्रतिपदा की ब्रह्म बेला में चार बजे से ही आदि गंगा गोमती और चक्रतीर्थ में स्नान कर गजानन को लड्डुओं का भोग लगाने के बाद श्रद्धालु मां ललिता देवी के दर्शन किया। नैमिष तीर्थ स्थित ललिता देवी चौराहे से पहला आश्रम महंत के डंका बजाते ही रामादल धर्म यात्रा पर चल पड़ा । भैरमपुर होते हुए परसपुर गाँव स्थित नहर के निकट परशुराम कूप व कुंदेरा में द्वारिका कुण्ड का दर्शन करते हुए प्रथम पड़ाव कोरौना पहुँचकर परिक्रमार्थी डेरा डालेंगे। यहाँ रात्रि विश्राम कर बुधवार की भोर प्राचीन द्वारिकाधीश मंदिर प्रांगण के तीर्थ कुंड में स्नान व दर्शन-पूजन के बाद दूसरे पड़ाव हरैया की ओर रवाना होंगे।

 

आपको बताते चले धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सतयुग में एक क्रूर राक्षस वृत्तासुर था, जो देवताओं और ऋषियों के यज्ञ आदि में विघ्न डालता था। राक्षस के आतंक से परेशान होकर सभी देवताओं, ऋषियों ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान नारायण ने बताया कि दधीचि ऋषि की हड्डियों से बने वज्र से ही असुर का अंत होगा। महर्षि दधीचि मिश्रिख – नैमिषारण्य के वन में तपस्या कर रहे थे। सभी ऋषि व देवतागण महर्षि दधीचि के पास पहुँचकर अपनी समस्या बताते हुए उनसे अस्थि दान करने का निवेदन करते हैं। महर्षि दधीचि अस्थि दान को तैयार हो जाते हैं पर इससे पहले सभी तीर्थों व देवों का दर्शन परिक्रमा करने की इच्छा व्यक्त करते हैं। देवराज इंद्र के आह्वान पर सभी तीर्थ व देवता नैमिषारण्य तीर्थ के अंतर्गत चौरासी कोसी परिधि में विराजते हैं। महर्षि दधीचि इनकी परिक्रमा व पूजन के बाद अपने शरीर पर दही नमक लगाकर गायों से चटाकर अपनी अस्थियों का दान करते हैं। अस्थियों से वज्र का निर्माण किया जाता है, जिससे देवराज इंद्र, व्रतासुर का वध करते हैं। यह परिक्रमा करने से मनुष्य को वही पुण्य प्राप्त होता है जो सभी तीर्थों में जाने से मिलता है।

21 फरवरी को परिक्रमा नैमिषारण्य से प्रथम पड़ाव कोरौना प्रस्थान करेगी।
22 फरवरी को दूसरे पड़ाव हरैया प्रस्थान।
23 फरवरी को तीसरे पड़ाव नगवां कोथवां प्रस्थान।
24 फरवरी को चौथे पड़ाव गिरधरपुर उमरारी प्रस्थान।
25 फरवरी को पांचवे पड़ाव साक्षी गोपालपुर प्रस्थान।
26 फरवरी को छठे पड़ाव देवगवां प्रस्थान।
27 फरवरी को सातवें पड़ाव मंडरुआ प्रस्थान।
28 फरवरी को आठवें पड़ाव जरिगवां प्रस्थान।
01 मार्च को नवें पड़ाव नैमिषारण्य प्रस्थान।
02 मार्च को दसवें पड़ाव कोल्हुआ बरेठी प्रस्थान।
03 मार्च को ग्यारहवें पड़ाव मिश्रिख प्रस्थान।
04 मार्च से 07 मार्च तक मिश्रिख में पंच कोसी परिक्रमा होगी।

Reported By :- Anoop Pandey

Published By :- Vishal Mishra