गंगा जामुनी तहजीब की मिसाल है श्री राम के “स्वागत की प्रथा”…

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कौशाम्बी (जनमत) :- जहां एक तरफ राजनीति अब धर्म के नाम पर समाज को अलग अलग कर रही वहीं दूसरी तरफ एक बस्ती ऐसी भी है जहाँ कोई भी बाहरी मेहमान बनकर आ जाये तो यह अंदाजा नहीं कर सकता कि कौन किस धर्म जाति का है।जी हां हम बात कर रहे कौशाम्बी के दारानगर टाउन की जिसे हिंदू मुस्लिम एकता का संगम बोला जा सकता है।

दाराशिकोह की बसाई गई बस्ती में जहां दोनों धर्मों के मुख्य पर्व दशहरा और मुहर्रम दोनों ही सदियों से मनाया जा रहा है जो ऐतिहासिक रूप से मनाया जाता है।नवरात्रि में यहां दुर्गा पूजा की जगह रामचरित मानस पर आधारित रामलीला का सजीव मंचन किया जाता है जिसमें किशोर पात्रों के ज़रिए मुकुट पूजन से राज्याभिषेक तक की लीला विधि विधान से होती है।लीला का आठवा दिन सीता हरण का होता है जो मुस्लिम मुहल्ला सैय्यद वाड़ा के पीछे किया जाता है लेकिन भगवान का रथ सैयद वाड़ा होकर जब गुज़रता है तो यहां के युवा भगवान का स्वागत अपने पुराने अंदाज़ में करते हैं.

भगवान को सबसे पहले लौंग इलायची पेश किया जाता है इसके बाद रामलीला के लोगों को जलपान दिया जाता।सैयद वाड़ा में पुरोहित और वाचक लोग रामचरित मानस की चौपाइयां पढ़ते हैं और साथ में मौजूद पंडितों की टोली ऐहा, ऐहा कहते हुए दोहराती है जिसे यहां का मुस्लिम समाज खड़े होकर सुनता है।दारानगर में यह रस्म ढाई सौ साल से लगातार जारी है अभीतक यहां कोई भी विवाद का नामोनिशान नहीं है।

REPORT- RAHUL BHATT…

PUBLISHED BY:- ANKUSH PAL…