तिल-तिल करके दम तोड़ रही है “गोमती”…

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लखनऊ (जनमत) :- हमारे देश में नदियों को पूजा जाता है ऐसे में नदियों की अविरल धरा को बनाये रखना न सिर्फ हमारा कर्त्तव्य है बल्कि इन्हें साफ़ रखना हमारा फर्ज भी है. लेकिन आज के आधुनिक युग में नदियों को न सिर्फ हम प्रदूषित कर रहें हैं बल्कि इनकी जीवन धरा को हम समाप्त करने पर आतुर हो गएँ हैं. इसी कड़ी में राजधानी में गोमती का पानी जहाँ राजधानीवासियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं जिसे भी हमने न सिर्फ प्रदूषित कर दिया है बल्कि इसकी अविरल धरा को भी कहीं न कहीं अवरोधित कर दिया है. वहीँ शोधन के बाद भी इस्तेमाल करने लायक नहीं बचा है। यह हाल नालों का पानी बिना ट्रीटमेंट के सीधे नदी में गिराने से हुआ है।

जिससे पेट की बीमारियों के लिए जिम्मेदार कॉलीफोर्म बैक्टीरिया ट्रीटमेंट को लिए जाने वाले पानी के मानक से 34 गुना अधिक तक मिल रहा है। यूपीपीसीबी के वर्ष 2019 में अभी तक लिए नमूनों की मासिक रिपोर्ट के मुताबिक हालात खराब ही मिले हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलीय जीवन ही नदी के पानी के शुद्ध और प्रदूषणमुक्त होने का संकेत होता है। पानी में ऑक्सीजन नहीं होगी तो जलीय जीवन बच नहीं पाएगा। जनवरी से जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक केवल कॉलीफोर्म ही नहीं पानी में जलीय जीवन बनाए रखने के लिए जरूरी घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा भी न्यूनतम हो गई है।