राम सिंह राणा को टिकट मिलने पर खिले युवाओ के चेहरे…..

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लखनऊ (जनमत): राम सिंह राणा जब मऊ  से लखनऊ आएं थे तो मऊ के निवासियो ने कभी भी नहीं सोचा  होगा की उनके क्षेत्र का ये साधारण सा दिखने वाला मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाला होनहार एक दिन उत्तर प्रदेश की छात्रराजनीति में धुर्व तारा बनकर चमक उठेगा।

लखनऊ विश्वविद्यालय में 12 वीं उत्तीर्ण करके  जब राम सिंह राणा ने लविवि में प्रवेश किया था तो उस वक्त के लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में पैसा पानी की तरह बहाया जाता था जबकि राणा का संघर्ष के दिनों में अपने करीबी छात्रों को ढंग से चाय – नाश्ता करवाने के पैसे भी नहीं थे। लेकिन कहावत है न जहाँ चाह वहाँ राह। हाँ जब दिल में कुछ करने का जज्बा हो तो मुसीबतें चाहे जितनी आएं लेकिन वो एक सच्चे छात्रनेता को अपना लक्ष्य पाने से डिगा नहीं सकती।

राम सिंह राणा ने जब 2005 में छात्रसंघ चुनाव में  महामंत्री पद लड़ने की ठानी तो उनके लिए राह आसान न थी लेकिन छात्र हितों के लिए संघर्ष करते करते राम सिंह राणा ने अपनी एक अलग छाप  विधार्थियों के ह्रदय में छोड़ रखी थी जो  की निःस्वार्थ  छात्र हितों के लड़ने के रूप में उभरकर सामने आयी थी। लखनऊ विश्वविद्यालय में उन दिनों के चुनाव में पैसा, बाहुबल काफी हावी रहता था लेकिन इन सबके बावजूद भी राम सिंह राणा ने सारे मिथकों को तोड़ते हुए अपने सादगी पूर्ण व्यहार के बल पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की।

लखनऊ विश्वविद्यालय में राणा छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय थे। उन्होंने फीस मूल्य वृद्धि हो या नियमित शिक्षा सत्र का संचालन  हो इन मुद्दों के साथ छात्रों के संघर्ष के लिए कूद पडे। राम सिंह राणा के पास भले ही छात्रसंघ चुनाव में धन का अभाव रहा हो  लेकिन अपने व्यवहार कुशलता के कारण हर छात्र-और छात्रा ने इसे एक अपने मान-सम्मान की लड़ाई मानते हुए मानों राम सिंह राणा की जितवाने लिए ठान रखी हो।

राम सिंह राणा के संघर्षों का जिक्र करते हुए उनके एक करीबी मित्र ने बताया की राणा छात्रसंघ चुनाव लड़ने के लिए पैसे की मदद उनके कुछ वरिष्ठ छात्रों ने भी की थी।  राणा खुद पोस्टर चिपकाने के लिए लेइ अपने हाथों से बनाते और फिर  उसको दीवालों पर चिपकाने के लिए अपने दो -चार साथियों के साथ निकल पड़ते।

Posted By:- Amitabh Chaubey

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