किस कानून के तहत हिंसा में शामिल लोगों की तस्वीर की गयी “सार्वजनिक”…

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लखनऊ (जनमत) :- राजधानी लखनऊ में एनारसी और सीएए के विरोध में हुए  प्रदर्शन के दौरान सरकारी और निजी संपत्ति को  गंभीर नुकसान पहुंचाने वालों की पहचान और  फोटो सार्वजनिक स्थल पर लगाए जाने को लेकर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद लखनऊ प्रशासन बैकफूट पर आ गया और इसी के चलते प्रशासन ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष प्रस्तुत किया.हाईकोर्ट ने इसे निजता के अधिकार का हनन मानते हुए स्वत: संज्ञान लिया है।  हालाँकि अवकाश होने के बावजूद मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की स्पेशल बेंच ने इस पर सुनवाई की। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है।

वहीँ दूसरी तरफ नौ मार्च को दिन में दो बजे सुनाया जाएगा मामले से जुदा फैसला.  इस दौरान कोर्ट ने लखनऊ के डीएम और मंडलीय पुलिस कमिश्नर से इस मामले में स्पष्टीकरण मांगा था कि किस कानून के तहत उन्होंने सार्वजनिक स्थान पर फोटो चस्पा किए हैं। रविवार को सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता राघवेन्द्र सिंह ने यह कहते हुए जनहित याचिका पर आपत्ति की कि लोक व निजी संपत्ति को प्रदर्शन के दौरान नुकसान पहुंचाने वालों को हतोत्साहित करने के लिए यह कार्रवाई की गई है। जिससे उनके इस बात की सीख मिले की भविष्य में वो ऐसे किसी भी प्रकार की हिंसा में शामिल न हों. जिन लोगों के फोटो लगाए गए हैं वह कानून का उल्लंघन करने वाले लोग हैं। इनको पूरी जांच और प्रक्रिया अपनाने के बाद अदालत से नोटिस भी भेजा गया था। मगर कोई भी सामने नहीं आ रहा है, इसलिए सार्वजनिक स्थान पर इनके फोटो चस्पा किए गए हैं। महाधिवक्ता का कहना था कि सरकार का कदम कानून सम्मत है और ऐसा करने में किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है।

Posted By:- Ankush Pal

Correspondent, Janmat News.