गोरखपुर (जनमत):- उत्तर प्रदेश के जनपद गोरखपुर में आज यानी कि गुरुवार को कार्तिक शुक्ल द्वितीया, यम द्वितीया तिथि पर भइया दूज, अन्नकूट और चित्रगुप्त पूजा बड़े धूमधाम से मनाई गई। भाइयों ने अपनी बहनों के घर जाकर भोजन किया तो बहनों ने भाइयों को तिलक लगाकर उनके लिए मंगल कामना की। भाइयों ने बहनों को उपहार दिया। कुछ जगहों पर भाइयों ने अपनी बहनों के साथ नदी में स्नान किया। गोरखपुर में कई जगहों परप्रतीकात्मक यमुना नदी बनाई गई थी। लोक मान्यता है कि भाई-बहन इस दिन एक साथ यमुना में स्नान करें तो यम उनके नजदीक नहीं आते।
बहनों ने पहले भाइयों को मरने का श्राप दिया, उसके बाद प्रायश्चित किया
हम तोसे पुछिला ए झांझर पिपरा…. गाकर धनसोई में हुआ गोधन की कुटाई
यम को खुश करने के लिए बहनों ने की पूजा
वहीं, व्रती महिलाओं ने सुबह स्नान करने के बाद पहले अक्षत (चावल) से अष्टदल पर गणेश आदि की स्थापना की। फिर व्यवसाय-व्यवहार और सभी मनोरथ की सिद्धि सौभाग्य, भाई की सुख प्राप्ति के लिए पूजन के संकल्प के बाद यमराज के को खुश करने के लिए पूजन किया। इसके बाद गणेश पूजन, यम फिर यम दूतों का पूजन किया। इस दौरान पूजन के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत भी बनाया गया।
बहनों ने पहले दिया भाई को श्राप, फिर जीभ पर कांटा चुभाया
भैया दूज पर अनोखी परंपरा का निर्वहन करते हुए गोरखपुर के गोरखनाथ, शास्त्रतीपुरम, रामजानकीनगर, घोषकंपनी, सूरजकुंड समेत अन्य मोहल्लों में बहनों ने पहले भाइयों को मरने का श्राप दिया, उसके बाद प्रायश्चित करते हुए अपनी जीभ पर कांटा चुभाया। यहां भाई दूज के पर्व में भी वहां की परंपरा की छाप स्पष्ट रूप से दिखती है। बुधवार की सुबह इसी परंपरा से यहां भाई दूज मनाया गया।
सामूहिक पूजन कर बहनों ने कूटा गोधन
सुबह से ही बहनों ने भाइयों को मरने का श्राप दिया। इसके बाद वे सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना कर गोधन कूटीं। गोधन में गोबर से चौकोर आकृति बनाई गई थी, जिसमें यम लोक के प्राणियों की प्रतिमूर्ति बनाई गई थी। पूजा-अर्चना के बाद उसे कूटा गया। भाई दूज का पर्व भाई-बहनों के पवित्र प्यार का पर्व है। इस दिन बहनों के द्वारा भाई के उज्जवल भविष्य एवं उसके दीर्घायु होने के लिए गोधन की पूजा की जाती है।
भाई को तिलक लगाकर की मंगल कामना
भाई के माथे में तिलक लगा कर बहनें, भाई की मंगल कामना करते हुए ईश्वर से मनौती मांगती हैं। पूजा अर्चना के पश्चात गोधन कूटते वक्त बहनें‘अवरा कुटीला भवरा कुटीला, कुटीला यम के दुआर…, ‘ कुटीला भईया के दुश्मन, चारू पहर दिन रात…’ जैसे पारंपरिक गीत गाती हैं।
ऐसा करने से यम-यमनी भाग खड़े होते हैं…
मान्यता है कि ऐसी कुटाई करने से यम लोक के निवासी एवं यम-यमनी भाग खड़े होते हैं। यम लोक की कुटाई करने के बाद यम लोक मे मुसल को रख कर भाई को पार कराते हैं। भाई दूज में बहनें अपने भाइयों को चना, लौंग, इलायची व सुपारी प्रसाद के रूप में खिलाती हैं। साथ ही मिठाइयां व घर में गोझा, दाल पूरी व खीर का भोजन भी कराती हैं।
कायस्थ समाज के लोगों ने की कलम-दवात की पूजा
इसके साथ ही कायस्थ समाज के लोगों ने चित्रगुप्त का पूजन किया। उन्होंने कलम-दवात की पूजा की। पीढ़ा पर भगवान चित्रगुप्त की प्रतिमा रखकर वैदिक मंत्रों, धूप, दीप मिष्ठान आदि से कायस्थ समाज के लोगों ने के एकजुट होकर भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में पूजा की। चित्रगुप्त को कायस्थ जाति का सृजनकर्ता और पूर्व पुरुष माना जाता है। ऋग्वेद के अनुसार चित्रगुप्त संपूर्ण सृष्टि के कर्ता और संपूर्ण ऐश्वर्यों के स्वामी हैं। वे रत्न आदि वैभव देते हैं।
ब्रह्मा की काया से उत्पन्न हुए चित्रगुप्त
ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद तिवारी के अनुसार, पौराणिक संदर्भों के अनुसार चित्रगुप्त को ब्रह्मा जी का पुत्र माना जाता है। उनकी काया से उत्पन्न होने के कारण ब्रह्मा ने वर्णों में उन्हें कायस्थ कहा है। इस बाबत ब्रह्मा ने कहा था, ‘तुम मेरे चित्त में गुप्त थे, अतः तुम्हारा नाम चित्रगुप्त होगा। श्रृष्टि के प्राणियों का लेखा-जोखा रखना तुम्हारा काम होगा। चित्रगुप्त धर्मराज के दरबार में चले गए और यमराज के कार्यों में सहयोग करते हैं। इसलिए कार्तिक शुक्ल द्वितीय को यमराज के साथ चित्रगुप्त पूजन का भी विधान है।