समाज की बेहतरी के लिए कोर्ट को न्याय हित में हस्तक्षेप करने का है “अधिकार”…

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प्रयागराज (जनमत):-  यूपी के इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक प्रकरण में कहा है कि कानून का उद्देश्य केवल अपराधी को सजा देना ही नहीं होता बल्कि इसके साथ ही सामाजिक शांति, सौहार्द, अपनापन व संपन्नता भी बनाए रखना है। पति-पत्नी के बीच एक छत के नीचे बच्चे के साथ सुखी जीवन बिताने के लिए समझौता हो गया है और वे पिछली कड़वाहट भूल एक साथ रहने लगे हैं तो यह समाज के लिए एक आदर्श स्थिति है।कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसी स्थिति में कोर्ट ने अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग कर वैवाहिक विवाद को खत्म नहीं किया तो न केवल पति-पत्नी का पारिवारिक जीवन बर्बाद होगा अपितु नाबालिग बच्चे का भविष्य शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगा।

कोर्ट ने याची के सुखमय वैवाहिक जीवन को देखते हुए दहेज उत्पीड़न केस में उसे अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट गाजियाबाद द्वारा दी गई सजा व आपराधिक मामले को रद्द कर दिया है और कहा है कि सजा रद्द होने से अपील अर्थहीन हो चुकी है, जिसे कोर्ट खत्म कर देगी। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने प्रमोद व अन्य की याचिका को  स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने यह फैसला गगन सिंह केस सहित दर्जनों निर्णयों पर विचार करते हुए दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि न्याय हित में कोर्ट धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत प्राप्त अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग विवाद के किसी भी स्तर पर कर सकती है।

कोर्ट ने सरकार की तरफ से अशमनीय अपराध को निरस्त करने की अधिकारिता पर की गई आपत्ति को अस्वीकार कर दिया और कहा कि समाज की बेहतरी के लिए कोर्ट को न्याय हित में हस्तक्षेप करने का अधिकार है। खास तौर पर वैवाहिक विवाद की स्थिति में। जब विवाद खत्म कर पति पत्नी साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हों।याची के खिलाफ पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज किया। पुलिस चार्जशीट के बाद कोर्ट ने सजा सुनाई। जिसकी अपील दाखिल की गई। इसी बीच पति-पत्नी में समझौता हो गया और कोर्ट से केस बंद करने की मांग की। सुनवाई न होने पर याचिका दाखिल कर कार्यवाही रद्द किए जाने की मांग की गई थी, जिसे कोर्ट ने  स्वीकार कर लिया है।

POSTED BY:- ANKUSH PAL…

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