गोरखपुर (जनमत):- राजस्थान के 1200 गांव में जल से खुशहाली लाने वाले रेमन मैग्सेसे समेत तमाम पुरस्कार पाने वाले पर्यावणविद राजेन्द्र सिंह ने एबीपी गंगा से खास बातचीत की. उन्होंने उत्तराखंड त्रासदी पर खेद जताते हुए कहा कि ये दूसरी बार नहीं बल्कि पांचवीं बार है, जब उत्तराखंड को इस तरह की त्रासदी का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि इस महाप्रलय और त्रासदी से बचना है, तो कम से कम तीन छोटी नदियों मंदाकिनी, अलकनंदा और भागीरथी पर बांध नहीं बनाया जाय. ऐसा नहीं किया गया, तो ये आपदा लेकर आएंगी.
जलपुरुष राजेन्द्र सिंह मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में 9 फरवरी को होने वाले 5वें दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि सम्मिलित होने के लिए गोरखपुर पहुंचे हैं. उन्होंने बताया कि वे किस तरह से भारत सरकार की नौकरी छोड़कर अलवर जिले के गोपालपुरा गांव गए और वहां पर चिकित्सक होने की वजह से रतौंधी से पीडि़त लोगों का इलाज करने लगे. किसी ने वहां पर बताया कि वहां पर पानी की कमी है. उसे दूर कर दें, तो बीमारी दूर हो जाएगी. धरती के पेट को पानी से भरने की जरूरत महसूस हुई. उन्होंने बताया कि इस कार्य के लिए उन्हें रेमन मैग्सेसे समेत तमाम पुरस्कार मिले.
राजेन्द्र सिंह ने बताया कि उन्होंने गांववालों की मदद से अनेक काम किए हैं. जिन्हें हमने सरकार की मदद के बगैर तमाम काम किए. हमने सरकार की तरह बांध बनाकर नदियों की हत्या नहीं की. हमने धरती के पानी को प्राकृतिक रूप से धरती के पेट तक पहुंचाया है. उत्तराखंड त्रासदी के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये दूसरी बार नहीं हुआ. इसके पहले 1990 से ये पांचवीं बार हुआ. उन्होंने टिहरी में 1992 में जाकर ये कहा था कि हिमालय भूकंप प्रभावित क्षेत्र हैं. यहां पर बड़े बांध नहीं बनने चाहिए. ये जितना लाभ करेंगे, उससे कही अधिक विनाश करेंगे.
पर्यावरणविद राजेन्द्र सिंह ने कहा कि उसके बाद 2006 से तरुण भारत संघ के उपाध्यक्ष प्रो. जीडी अग्रवाल और वे खुद तरुण भारत संघ का काम छोड़कर गंगा बेसिन जिससे गंगा बनती हैं. उन तीन नदियों भागीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी को छोड़ दो. उन्होंने कहा कि वे तीनों नदियों पर अवरोध (बांध) पैदा करेंगे, तो वे इको-फर्टाइल एरिया है. वहां जब ग्लेशियर और बादल फटेंगे, तो विनाश होगा. भूकम्प आएगा, तो विनाश होगा. जब ऐरेटिक रेंस होगी, तो विनाश होगा. हिमालय में जब डैम बनाते हैं और डैम टूटता है तो उसका बहाव 100 गुना अधिक हो जाता है. हमने कहा कि ऐसे जगह पर डैम बनाना खतरनाक है. सरकार और समाज ने नहीं सुना. समाज विकास का लालची और सरकार ग्लोबल इकोनॉमिक लीडर बनना चाहती है. जब सरकार ग्लोबल इकोनॉमिक लीडर बनना चाहती है, तो ग्लोबल सेफ्टी खत्म हो जाती है.
विकास जहां होता है, वहां विनाश भी पीछे चलता रहता है. लोगों की आवाजाही भी एक वजह मानते हैं. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विकास वो नहीं होता, जिसमें विनाश हो. भारत का विकास सनातन था. सनातन विकास का अर्थ है सदैव, नित्य, नूतन, निर्माण. कभी कोई मरता नहीं है. वो पुर्नजीवित होता है. वो आदि से अंत तक चलता रहता है. तो जो देश अपने विकास को सनातन विकास की परिभाषा को मानता हो. वो कभी डेफ्थ और डिजास्टर में विश्वास नहीं करता है. हमने अपने विकास की अवधारणा को छोड़ दिया और दूसरे के विकास की अवधारणा के पीछे भागने लगे.
हम जो दूसरे के विकास की अवधारणा में चले गए. तो दूसरों के विकास की अवधरणा है. वो हमारा लालच है. जब हम लालच में विकास करते हैं. तो सृष्टि हम सबकी जरूरत पूरा कर सकती है. लेकिन, हमारे लालच को पूरा नहीं कर सकती है. जो लोग पुर्नजीवन में विश्वास करते हैं, वे इसे समझते हैं. भारत के उपनिषद और वेद पुर्नजन्म की प्रक्रिया को मानते हैं. जो लोग इसमें विश्वास रखते हैं उनका विकास सनातन प्रक्रिया से होना चाहिए. सनातन विकास पुर्नजन्म से होता है. जब हम इस प्रक्रिया को खत्म करेंगे, तब उत्तराखंड जैसे विनाश देखने को मिलते हैं.
Posted By:- Ankush Pal…
Special Desk.