जाने अनजाने, तुम खुद को, मुझसे कहीं छिपा रही थी

करियर

इन दिनों हिंदी साहित्य जगत में एक युवा कवि की रचनाओं ने धूम मचा रखी है जिनका नाम है सुयश कुमार द्विवेदी…. इनकी ओजेस्वी और प्रेरणादायक कवितायेँ जहाँ हृदयविदारक है वहीँ कहीं न कहीं आम जनमानस से खुद को जोड़ने का प्रयास भी करती है, आईये रुबरु होतें है इनकी कृतियों से

ग़लती से कभी कभी
अपनी नज़रे, टकरा रही थी;
कभी मुझसे,कभी खुद से
तुम,रह रह के शरमा रही थी;
जाने अनजाने,तुम खुद को,
मुझसे कहीं छिपा रही थी;

उस दिन,मैं आदमी सबसे खुशनसीब था,
देख मेरी तरफ,प्यार से
जब तुम मुस्कुराए;
आंखों की भाषा,तुम्हारी मैं
पढ़ने की कोशिश कर रहा था,
ज़िन्दगी के सबसे हसीन पलों से
शायद मैं, गुजर रहा था;
चेहरे की सादगी तुम्हारी,
सुन्दरता और निखार रही थी;

चेहरे पे लटकते बालों के लटों को,
तुम, रह रह के सँवार रही थी;
वह दिन,कैसे भूल पाऊंगा?
ताउम्र,हे ईश्वर!
जब,मेरी ज़िंदगी से
तुम मुझे,मिलवाए;
किस आगोश में ना जाने?
मैं गिरफ्त हो रहा था,
नही जानता,उस वक़्त मैं
जाग या सो रहा था;
वह कुछ घंटे मेरी ज़िंदगी के
सबसे यादगार है;
कैसे कहूं, उस लड़की से?
की हमको तुमसे प्यार है;

सुयश कुमार द्विवेदी
सहायक अभियोजन अधिकारी
दिल्ली
Mob-9453401287