दो शब्दों में बसी “संसार” की आकृति…..

करियर

इन दिनों हिंदी साहित्य जगत में एक युवा कवि की रचनाओं ने धूम मचा रखी है जिनका नाम है सुयश कुमार द्विवेदी…. इनकी ओजेस्वी और प्रेरणादायक कवितायेँ जहाँ हृदयविदारक है वहीँ कहीं न कहीं आम जनमानस से खुद को जोड़ने का प्रयास भी करती है, आईये रुबरु होतें है इनकी कृतियों से

दो शब्द,ये अमृत जीवन के,
दो शब्द,महान ये हर जन के,
सम्पूर्ण विश्व, इनका है ऋणी,
ये सच्ची ख़ुशी है, हर मन के,

हर पुष्प,पल्लवित इनकी छाया में
हर आकृति ढली,इनकी काया से.
कैसे जिये,बिन इनकी माया के?

मेरे जीवन के सम्मान है वो,
हर सांस के बस अभिमान है वो,
इस नाम की मेरे पहचान है वो,
इस जनम के मेरे वरदान है वो,

माता पिता, शब्द दो,पूजनीय;
ईश्वर समान,है वो तुलनीय,
धन्य है हर वह जीवन,
जो है उनका,बस प्राणप्रिय;

है भाग्यवान वह व्यक्ति बहुत,
माँ बाप संग हैं जिनके,
जाकर देखो पीड़ा उनकी,
जो वंचित है इस सुख से,

बखान करूँ कैसे महिमा की?
माँ बाप मूर्ति है,एक त्याग की,
क्या क्या है उन्होंने,कष्ट सहे
शब्दों में बताना, नही मुमकिन

खुद की हर खुशी,वो भूल गये,
खातिर बस हम लोगों की,
दुनिया के सारे शूल सहे,
परवाह ना की, निज जीवन की;

कर्तव्य हमारा,उनका पूजन,
सच्चे ईश्वर का,सच्चा वंदन
कुछ त्राण सके,उनके ऋण से
कर सके सफल,निज जीवन;

सुयश कुमार द्विवेदी
सहायक अभियोजन अधिकारी
दिल्ली
Mob-9453401287