कोरोना पर लगाम के लिए सीएम योगी तो सख्त लेकिन उनके अधिकारी हुए बेलगाम

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उत्तर प्रदेश (जनमत ): फरियादियों की समस्या को सुनकर उसका निस्तारण करने वाले अधिकारी भी पीड़ित है यह पढ़ने में आपको अजीब जरूर लग रहा होगा लेकिन यह पूरी तरह से सच है। पीड़ित अधिकारी भी एक – दो या फिर तीन बल्कि इनकी संख्या सैकड़ा पार है। पीड़ित अधिकारियों ने संगठन के एक मंच के जरिये सरकार तक अपनी आवाज़ पहुंचाई तो सरकार ने भी इनकी समस्या को गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों को निस्तारण करने का निर्देश भी दिया लेकिन ऐसे नौकरशाह जो पूरी सूबे की सरकार चला रहे है सीएम योगी के निर्देशों को भी दरकिनार कर गए। ये हाल तब है तब वैश्विक महामारी कोरोना का लखनऊ समेत पूरे प्रदेश में कहर जारी है।

कोरोना काल में ही फरियादियों की समस्या का समाधान करना है और कोरोना के प्रसार को रोकने की भी जिम्मेदारी इन्ही शूरवीर अधिकारियों के कंधे पर है। कोरोना के प्रसार को रोकने समेत अन्य समस्याओं का ये अधिकारी कैसे समाधान करेंगे जब इनके पास मौके पर जाने के लिए कोई सरकारी वाहन ही उपलब्ध नहीं है।

ये अधिकारी कोई और बल्कि उत्तर प्रदेश के अलग – अलग जनपदों में तैनात तहसीलदार है। आपको जानकार हैरानी होगी कि लखनऊ की ही पांचों तहसील में तैनात किसी भी तहसीलदार के पास सरकारी वाहन नहीं है। कमोबेश यही स्थिति उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में तैनात तहसीलदारों के साथ है। पहले इनके पास जो सरकारी वाहन थे उसको एक पारदर्शी प्रक्रिया के तहत नीलाम किया जा चुका है लेकिन नए वाहन की बात की जाये तो नीलामी के काफी समय बीत जाने के बाद भी तहसीलदारों को सरकारी वाहन मयस्सर नहीं हुए। इस संबंध में उत्तर प्रदेश राजस्व ( प्रशासनिक ) अधिकारी संघ के आधिकारिक लेटर हेड से संगठन के अध्यक्ष निखिल शुक्ला और महासचिव अनुराग सिंह के द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके अधिकारियों को पत्राचार भी हुआ लेकिन तकरीबन दो साल बीतने को है तहसीलदारों के पत्राचार पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। हाँ यह जरूर है कि समय – समय पर मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी और मुख्य सचिव कार्यालय ने लिखे गए पत्राचार को संज्ञान में तो लिया लेकिन उनके द्वारा दिए गए सारे आदेश – निर्देश कागज़ों तक ही सिमित रह गए। तहसीलदारों के सगठन की सरकार से तमाम मांगे है उनकी मांगो को तो अनसुना किया ही गया लेकिन जिस बिमारी ने पूरी दुनिया को कोरोना वायरस के रूप में जकड़ रखा है उस कोरोना काल में लखनऊ समेत सूबे के तहसीलदार सरकारी वाहन से महरूम है।

ये वही कोरोना बिमारी है जिसके नाम पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों की टीम – 11 नाम से एक टीम बना डाली। अधिकारियों की इसी टीम – 11 के साथ सीएम योगी तकरीबन 5 महीने से बैठक पर बैठक कर रहे है और कोरोना के प्रसार को रोकने का निर्देश देते रहे। वो बात दीगर है कि मुख्यमंत्री द्वारा लगातार बैठक करने के बावजूद भी कोरोना के प्रसार को रोका तो नहीं जा सका। कोरोना मामले में वर्तमान में लखनऊ समेत पूरे प्रदेश में क्या हालात है इससे सभी वाकिफ है। यहाँ इस बात का जिक्र करना इसलिए आवश्यक था क्योकि कोरोना के प्रसार पर नकेल लगाने के लिए राजधानी समेत सूबे के तहसीलदार भी एक महत्वपूर्ण कड़ी। तहसीलदारों के पास कोरोना पर लगाम लगाने के साथ ही कानून व्यावस्था बनाये रखना और किसी भी तरह के फरियादी की समस्या का निस्तारण करना समेत कई अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां इन्ही के कंधो पर है। ऐसे में वाहन से महरूम हो चुके तहसीलदार कोरोना काल में कैसे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकेंगे अपने आप में ही अचंभित करने वाली बात है।

 उत्तर प्रदेश राजस्व ( प्रशासनिक ) अधिकारी संघ की कुछ प्रमुख मांगे  

तहसीलदारों के संगठन उत्तर प्रदेश राजस्व ( प्रशासनिक ) अधिकारी संघ की जो महत्वपूर्ण मांगे है उनको जानकार आप भी हैरान हो जायेंगे कि दूसरों के दुःख – दर्द दूर करने वाले ये अधिकारी खुद कितने दुःखी और बेबस हो चुके है। संगठन की जो मांगे है उनमे नायब तहसीलदारों के वर्तमान ग्रेड वेतन 4200 सौ रूपये ( पे – मैट्रिक्स लेवल – 6 ) को उच्चीकृत कर 4800 रूपये ( पे – मैट्रिक्स लेवल – 8 ) किया जाये। इस संबंध में कार्रवाई का निर्देश भी हुआ लेकिन वेतन विसंगतियो को आज तक दूर नहीं किया जा सका। तहसीलदार / नायब तहसीलदार सेवा नियमावली और शासनादेश के अनुसार सेवा में स्थायीकरण के लिए विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक है। शासनादेश के मुताबिक प्रत्येक छह महीनें में विभागीय परीक्षा आयोजित करने का प्रावधान है। आरोप है कि परीक्षा तो दूर जो परीक्षा पूर्ण हो चुकी है उसका नतीजा भी घोषित नहीं हुआ।
मांगो में इन अधिकारियों की एक मांग यह भी है कि नायब तहसीलदारों को पूर्णकालिक मजिस्ट्रेट का दर्जा दिया जाये। इस संबन्ध में संगठन के पत्र पर पत्राचार भी हुआ लेकिन डेढ़ वर्ष से भी ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद इस मुद्दे पर कोई विचार नहीं किया गया। ऐसी ही इन अधिकारियों की कई अन्य महत्वपूर्ण मांगे है जिस पर काफी समय बीत जाने के बाद भी कोई फैसला नहीं हुआ। इन मांगो में ही सबसे महत्वपूर्ण और जो जरुरी मांग है वह तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों को सरकारी वाहन उपलब्ध कराने की मांग है। अब सोचिये जिस कोरोना बिमारी की रोकथाम के नाम पर खुद सीएम योगी बैठक करते रहे है उसी बिमारी के प्रसार को रोकने की जिम्मेदारी भी इन्ही की कंधो पर है। ऐसे में बिन वाहन बिमारी और अन्य समस्याओं का अधिकारी कैसे समाधान करें इसको लेकर ये अधिकारी बेहद फिक्रमंद है। फिलहाल सबसे अहम सवाल यह है कि मुख्यमंत्री से लेकर सूबे के सबसे ताकतवर अधिकारियों को इस समस्या से अवगत कराया जा चुका है लेकिन समस्या जस का तस बनी हुई है।
Posted by – Anoop Chaudhary