5 अगस्त को नाग पंचमी- जानें पूजा विधि, मंत्र और महत्व

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Nag Panchami (Janmat News): नाग पंचमी का त्योहार नागों को समर्पित है। यह हर वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष नाग पंचमी 5 अगस्त दिन सोमवार को पड़ रही है। इस दिन व्रत पूर्वक नागों का पूजन-अर्चन होता है। इस बार नाग पंचमी सावन के सोमवार को पड़ रही है, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। नाग पंचमी का पर्व नागों के साथ जीवों के प्रति सम्मान, उनके संवर्धन एवं संरक्षण की प्रेरणा देता है।

देवी भागवत में प्रमुख नागों का नित्य स्मरण किया गया है। हमारे ऋषि-मुनियों ने नागोपासना में अनेक व्रत-पूजन का विधान किया है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी नागों को अत्यन्त आनन्द देने वाली- ‘नागानामानन्दकरी’ पंचमी तिथि को नाग पूजा में उनको गाय के दूध से स्नान कराने का विधान है।

पूजा विधि एवं मंत्र

नाग पंचमी के दिन अपने घर के द्वार के दोनों ओर गोबर के सर्प बनाकर उनका दही, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, मोदक और मालपुआ आदि अर्पित कर पूजा करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराकर एक भुक्त व्रत करने से घर में सर्पों का भय नहीं होता है। नागों को दूध से स्नान और पूजन कर दूध पिलाने से और वासुकीकुण्ड में स्नान करने से भी सर्प भय से मुक्ति मिलती है।

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अनंत, वासुकि, शेष, पद्मनाभ, कंबल, कर्कोटक, अश्व, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालीय तथा तक्षक इन नागों के नाम हल्दी और चंदन से दिवार पर लिखें। नाग माता कद्रू का नाम भी लिखकर फूल आदि से पूजा कर निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करें-

अनन्तं वासकिं शेषं पद्मकम्बलमेव च।

तथा कर्कोटकं नागं नागमश्वतरं तथा।।

धृतराष्ट्रंं शंखपालं कालाख्यं तक्षकं तथा।

पिंगलञ्च महानागं प्रणमामि मुहुर्मुरिति।।

नाग पंचमी के दिन लोहे की कड़ाही में कोई चीज न बनाएं। नैवेद्यार्थ भक्ति द्वारा गेहूं और दूध का पायस बनाकर भुना चना, धान का लावा, भुना हुआ जौ, नागों को दें।

नाग पूजा का महत्व

कहा जाता है कि एक बार मातृ-शाप से नागलोक जलने लगा। इस दाहपीड़ा की निवृत्ति के लिए नाग पंचमी को गाय के दूध से स्नान कराया गया। दुग्ध स्नान नागों को शीतलता प्रदान करता है, वहीं भक्तों को सर्पभय से मुक्ति भी देता है।

फ्रेंडशिप डे- मजहब, उम्र, लिंग और सीमाओं से परे इस दिन को आप भी खुलकर मनाएं.

जो प्राणी नाग पंचमी का व्रत तथा अर्चन करता है, उस प्राणी के हित के लिए सब नागों के स्वामी शेष एवं वासुकि नाथ भगवान हरि और सदाशिव से हाथ जोड़ प्रार्थना करते हैं। शेष और वासुकि की प्रार्थना से भगवान शिव और भगवान विष्णु प्रसन्न होकर उस जीव की कामनाओं को परिपूर्ण करते हैं। यह जीव नाग लोक में अनेक तरह के भोगों को भोगने के बाद बैकुंठ लोक या शोभायमान कैलाश में जाकर शिव या विष्णु का गण होकर परमानंद का भागी हो जाता है।

 

Posted By: Priyamvada M