आदिवासिओ की पहचान “मुर्गा जंग”…

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एक्सक्लूसिव न्यूज़(जनमत) बस्तर एक आदिवासी क्षेत्र होने के नाते देश में जुड़े जनजातियों से एक है। वास्तव में बस्तर में जनजाति की बहुत पुरानी आबादी है, जो अब कई  वर्षों से लगभग छूटी हुई है। बस्तर की आदिवासी संस्कृति में बहुत सी चीजें ऐसी हैं, जो रोमांच से भर देती हैं। इसमें ‘मुर्गा लड़ाई’ देखने में बहुत दिलचस्प होती है|  जहां मुर्गा लड़ाई को देखने के लिए  हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे। जिसमें लाखों रुपए के शर्त लगते हैं। परंतु  झारखंड के बाजारों और मेलों में ‘मुर्गा लड़ाई’ का खास प्रकार का प्रबंध किया जाता है|

इसमें मुर्गा के पैरों में छूरीनुमा नुकीला छोटा सा हथियार बांध देते है। जैसे ही लड़ाई शुरू होती है, वैसे ही आयोजन में आये लोग मुर्गा के नाम ले कर जोर से हल्ला शुरू कर देते है और ग्रामीण हाथों में रुपए लहराते हुए दांव लगाना शुरू कर देते हैं। इस लड़ाई में कई बार मुर्गों की मृत्यु भी हो जाती है। गांव कस्‍बों में यह मनोरंजन का  हिस्‍सा होता है| ‘मुर्गा लड़ाई’ देखने में बहुत रोचक होती है| लड़ने के लिए मुर्गा को खास तौर पर प्रशिक्षण दिया जाता है आदिवासी संस्कृति की परंपरा में मुर्गा लड़ाई भी एक अहम हिस्सा है। लोग इसे शान की लड़ाई मानते हैं। मुर्गा लड़ाई पहले समय में मनोरंजन का हिस्सा हुआ करता था जहां लोग अपने पसंद के मुर्गो पर दांव लगाते थे|

पर अब इस लड़ाई के नाम पर लोगो ने जुआ शुरू कर दिया है| वही अब  इस लड़ाई से आदिवासी संस्कृति की पहचान गुम होती जा रही है| मुर्गा लड़ाई’ देखने में बहुत रोचक होती है| बस्तर में मुर्गा लड़ाई के लिए कई क्षेत्रों में मुर्गा बाजार भी लगाया जाता है| इतिहास के पन्नों में मुर्गा लड़ाई की कोई प्रमाणिक जानकारी तो नहीं मिलती, लेकिन वही आदिवासी समाज में मुर्गा लड़ाई कई पीढ़ियों से गांव कस्‍बों में और आम जिंदगी का मनोरंजन का हिस्सा बना हुआ है| मुर्गो की लड़ाई तभी समाप्त होती है जब एक मुर्गा घायल हो जाए या मैदान छोड़कर भाग जाए|