तवायफ के आंगन की मिट्टी के बिना….अधूरी है “माँ शक्ति” की प्रतिमा….

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एक्सक्लूसिव न्यूज़(जनमत):- जिस काम को और कोई सम्पन्न नहीं करता, उसे सर्वशक्ति सम्पन्न देवी दुर्गा  कर सकती हैं। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी की संरचना तमाम देवी-देवताओं की संचित शक्ति द्वारा हुई है| नवरात्रि शुरु हो गयी है और हर जगह पांडाल में दुर्गापूजा के लिए माँ दुर्गा जी की भव्य मूर्तियां पंडालों में स्‍थापित की जा रही है| ऐसी कहा जाता है कि इन मूर्तियों को बनाने के लिए तवायफ के घर से मिट्टी लाई जाती है|

(तवायफ  का कोठा)

आज हम आप को इस के बारे मै पूरी जानकारी दे रहे है| सभी जानते हैं कि दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की भव्य मूर्तियों का एक खास महत्व होता है। लेकिन इस पावन पर्व की बात कोलकाता की दुर्गा-पूजा के बिना अधूरी है। पूरे भारत देश में लोकप्रिय  इस पूजा के लिए यहां एक विशेष प्रकार मिट्टी से माँ दुर्गा की मूर्तियों बनाई जाती है और इस मिट्टी का नाम ‘निषिद्धो पाली’ है| निषिद्धो पाली तवायफ के घर या क्षेत्र को कहा जाता है।  भारत में कोलकाता का कुमरटली इलाके में सर्वाधिक देवी माँ की मूर्तियां बनाई जाती है। वहां निषिद्धो पाली के रज के रूप में सोनागाछी की मिट्टी का  प्रयोग होता है। सोनागाछी का इलाका कोलकाता में देह व्यापार का गढ़ माना जाता है और यहाँ  की महिलाओं को  कभी भी इज्जत भरी नजरों से नहीं देखा जाता है लेकिन बिना इनके सहायता के  देवी माँ की पूजा अधूरी मानी जाती है।

  (कोलकाता का कुमरटली इलाका)

हमारे समाज का ये वो हिस्सा है जिसे हम लोगो ने पूरी तरह से नकारा चुके है, जिसका कोई अस्तित्व नहीं है| उनका देवी माँ की मूर्ति में इतना बड़ा योगदान वाकही में बहुत बड़ी बात है| तवायफ़ के आंगन की मिट्टी के साथ हि गंगा घाट की मिट्टी, गौमूत्र और गोबर भी मिलाया जाता है| दुर्गा पूजा में सिर्फ बंगाल में ही वेश्यालयों की मिट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि संपूर्ण देश में वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है| आप ने फ़िल्म ‘देवदास’  जरुर देखा होगा  इस फ़िल्म मै एक सिन है जब पारो(ऐश्वर्या राय) दुर्गा  माँ की मूर्ति के लिए चंद्रमुखी(माधुरी दीक्षित) के कोठे पर मिट्टी मांगने के लिए जाती है, क्योंकि चंद्रमुखी(माधुरी दीक्षित) एक तवायफ़ थी|

(फ़िल्म ‘देवदास’  का एक दृश्य)

मान्यता है कि जब एक महिला या कोई अन्‍य व्यक्ति वेश्यालय के द्वार पर खड़ा होता है तो अंदर जाने से पहले अपनी सारी पवित्रता और अच्छाई को वहीं छोड़कर प्रवेश करता है, इसी कारण यहां की मिट्टी पवित्र मानी जाती है। यही कारण है कि तवायफ़ के घर के बाहर की मिट्टी को मूर्ति में लगाया जाता है। कुछ पौराणिक कहानियों में जिक्र है कि प्राचीन काल में एक वेश्या मां दुर्गा की अन्नय भक्त थी उसे तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं आदेश देकर उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करवाने की परंपरा शुरू करवाई। उसे वरदान दिया था कि उसके यहां की मिट्टी के उपयोग के बिना प्रतिमाएं पूरी नहीं होंगी।

(तवायफ  के कोठा की मिट्टी से देवी माँ की मूर्ति बनाते हुए)

वही एक कहानी ये भी है कि वेश्याओं ने जो काम अपने लिए चुना है वो बहुत ही ख़राब काम है| उनके बुरे कर्मों से मुक्ति दिलाने के लिए ही इनके आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है| पहले के समय मे तवायफ़ के घरों से भिखारी बनकर मिट्टी मांग कर लाया जाता था, लेकिन बदलते समय के साथ ही इस मिट्टी को भी अब कारोबार होने लगा है।वही यह माना जाता है कि महिला एक शक्ति है, जिनकी पूजा होनी चाहिए, अगर यही महिला जब तवायफ बनी है तो इसमें उसकी गलती नहीं बल्कि हमारे इस रूडिवादी समाज की है इसलिए उनके घरों की मिट्टी को प्रतिमा में मिलाने से उन्हें सम्मान दिया जाता है क्योंकि  मां के आंचल से पवित्र इस पृथ्वी पर कोई जगह नहीं है| इसीलिए जहां कि मिट्टी माता के शरीर पर लगी हो तो तो  वहां के लोग अपवित्र कैसे हो सकते हैं? मिट्टी की मिलावट से यह तो साफ़ हो जाता है कि “माँ” शक्ति बिना किसी पक्षपात,ऊच-नीच,जाति, पंथ के सभी पर अपनी कृपा बरसाती है|

Posted By:- Amitabh Chaubey