प्रदेश के किसानों को चना देगा “चैन” और सरकार देगी “सुकून”…

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लखनऊ (जनमत):- बुंदेलखंड एवं विंध्य क्षेत्र में आने वाले चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा और सोनभद्र जिले के लाखों किसानों के लिए चने की खेती चैन का सबब बनेगी। इसके बाजार भाव को लेकर उनको चिंता नहीं करनी होगी। सरकार पिछले साल की तरह इस बार भी मिनिमम सपोर्ट प्राइस (प्रति कुंतल 5335 रुपये) पर उनसे चना खरीदेगी। इससे इन जिलों में आने वाले दिनों में चने की खेती को और प्रोत्साहन मिलेगा। सरकार का लक्ष्य 2.12 लाख मीट्रिक टन चना खरीदने का है।

इसी तरह सरकार इस साल सरसों/राई और मसूर भी एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) पर खरीदेगी। सरसों की खरीद से इटावा एवं आसपास के सरसों उत्पादक किसानों को लाभ होगा। सरकार का लक्ष्य 9.34 लाख मीट्रिक टन सरसों एवं राई खरीदने की है। इसी तरह मसूर की खरीद से बलिया जैसे उत्पादक जिलों के किसान लाभान्वित होंगे। लक्ष्य 1.49 लाख मीट्रिक टन मसूर खरीदने का है। सरकार ने सरसों/राई का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5450 एवं मसूर का प्रति कुंतल समर्थन मूल्य 6000 रुपये घोषित कर रखा है।

दलहन-तिलहन में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य सधेगा, बेहतर भाव से किसान भी होंगे खुश
सरकार को इससे दोहरा लाभ होगा। एक तो किसानों को बेहतर बाजार भाव मिलेगा। सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी मिलने से इनकी खेती का रकबा और उत्पादन भी बढ़ेगा। इसके नाते सरकार ने दलहन और तिलहन के मामले मेंप्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने का जो लक्ष्य रखा है क्रमशः वह भी पूरा होगा।
उल्लेखनीय है कि योगी सरकार दलहन उत्पादन में यूपी को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। प्रयास यह है कि अगले चार साल में जितनी मांग है उसके बराबर उत्पादन हो। इसके लिए विशेषज्ञों की मदद से उत्पादन के साथ उत्पादकता को बढ़ाने पर जोर देने के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की भी सरकार गारंटी दे रही है।
इसीलिए रबी के सीजन की शुरुआत में ही किसानों को 33 करोड़ रुपये के दलहनी फसलों के निःशुल्क बीज मिनीकिट के रूप में उपलब्ध कराए गये। इसमें चना (प्रति किट 16 किग्रा) एवं मसूर (प्रति किट 8 किग्रा) के 2.5 लाख मिनीकिट शामिल थे। इसके अलावा प्रदेश के कृषि जलवायु क्षेत्र (एग्रो क्लाइमेट जोन) की उपयोगिता के अनुसार 28 हजार कुंतल दलहनी के अन्य फसलों के बीज भी किसानों को निःशुल्क दिए गये थे।

मांग के सापेक्ष आधे से भी कम है दलहन का उत्पादन
फिलहाल प्रदेश में दलहन का उत्पादन मांग के सापेक्ष 40-45 फीसद ही है। प्रदेश सरकार अगले पांच सालों में इसे बढ़ाकर मांग के अनुरूप करना चाहती है। सरकार के इस निर्णय से दो लाभ होंगे। अगस्त के सूखे एवं अक्टूबर की अप्रत्याशित बाढ़ से प्रभावित किसानों को बीज के रूप में उन्नत प्रजाति का कृषि निवेश मिलने से राहत मिलेगी। साथ ही सरकार की मंशा के अनुरूप दलहन का उत्पादन एवं रकबा भी बढ़ेगा।

खपत का मात्र 30-35 फीसद ही होता है तिलहन का उत्पादन
इसी क्रम में सरकार तिलहन के मामले में भी प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। फिलहाल खाद्य तेलों की आवश्यकता के सापेक्ष प्रदेश में तिलहन का उत्पादन 30-35 फीसदी ही है। प्रदेश सरकार अगले चार सालों में इसे बढ़ाकर मांग के अनुरूप करना चाहती है। इसके लिए प्रदेश सरकार ने ऐसी रणनीति तैयार की है, जिससे उत्पादन के साथ उत्पादकता बढ़ सके।

तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए रबी के सीजन में किसानों के लिए 2905 कुंतल से बढ़ाकर 18250 कुंतल प्रमाणित एवं आधारीय नवीन प्रजातियों के बीज व्यवस्था की थी। बार्डर लाइन सोईग, अन्तःफसली और जायद तिलहनी फसलों से उत्पादन और क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए किसानों में सघन जागरूकता अभियान चलाया गया था।असमतल भूमि पर सूक्ष्म सिंचाई के साधनों का विकास कर तिलहनी फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन में वृद्धि पर भी सरकार का खासा जोर है। साथ ही लघु और सीमांत किसानों को बेहतर प्रजातियों के मिनीकिट भी दिये गये। योगी सरकार का लक्ष्य है कि अगले चार साल में तिलहन फसलों का क्षेत्रफल 24.77 लाख हेक्टेयर, उत्पादकता 12.85 कुंतल प्रति हेक्टेयर और उत्पादन 31.30 लाख मीट्रिक टन हो।

PUBLISHED BY:- ANKUSH PAL..