इस शरद पूर्णिमा पर रहेगा “चंद्रग्रहण” का साया…

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लखनऊ  (जनमत):- शरद पूर्णिमा का हिंदू धर्म में  विशेष महत्व है। आश्विन माह की पूर्णिमा को सभी पूर्णिमा में सबसे खास माना जाता है।शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है  लेकिन इस बार कई साल बाद शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण लगने जा रहा है और इस दिन रात में खीर भी खुले आसमान में रखी जाती है, ताकि उसमें चन्द्रमा से अमृत वर्षा हो सके, लेकिन इस साल खीर को पूरी रात बाहर ना रखें, इससे वह दूषित हो जाएगी।

ग्रहण 28 अक्टूबर की रात 01 बजकर 05 मिनट में लगने जा रहा है और समाप्ति 02 बजकर 23 मिनट पर होगी। इसलिए ग्रहण समाप्त होने के बाद ही  02 बजकर 23 मिनट के बाद ही स्न्नान कर खीर बनाएं और फिर उसे खुले आसमान के नीचे रखें और सुबह भगवान का भोग लगाकर खीर का प्रसाद ग्रहण करें।

आपको बता दे कि शरद पूर्णिमा पर  उज्ज्वल चांदनी में सारा आसमान धुला नजर आता है, हर तरफ चन्द्रमा के दूधिया प्रकाश में प्रकृति नहा उठती है। इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है।भगवान श्रीकृष्ण और राधा की अदभुत और दिव्य रासलीलाओं  की शुरुवात भी शरद पूर्णिमा के दिन  हुई। शास्त्रों के  मुताबिक  माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है. नारद पुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी में मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए निशीथ काल में पृथ्वी पर  आती  है और माता यह भी देखती है- कि कौन जाग रहा है? यानि अपने कर्त्तव्यों को लेकर कौन जागृत है? ऐसी मान्यता है कि  जो इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की उपासना करते है मां की उनपर  असीम कृपा होती है.

PUBLISHED BY:- ANKUSH PAL…