सत्य की “लौ” से जल रहा दीप….

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करियर (जनमत): शब्द हमारे मनस पटल पर काफी गहरा प्रभाव छोड़ते है। साहित्य का किसी भी समाज के निर्माण में व्यापक भूमिका होती है । ऐसे ही एक कवि एवं लेखक है सुयश कुमार द्विवेदी जिनके कविताएं व लेख प्रेरणादायी व उत्साहवर्धक होते है।

आईये रुबरु होतें है इनकी कृतियों से

“सत्य का एक दीप”

सूर्य अस्त हो रहा था,
आ रहा बस अंधेरा था,
हर दिशा को कैद किया,
सबको उसने डरा दिया;

तभी इक दीप प्रकाश दिखा,
अंधेरे का नाश दिखा,
शत्रु सेना थी,बहुत बड़ी
वह दिया था,इक सत्य लडी,

धीरे धीरे उसे विजय मिलने लगी,
शत्रु क़िले की नींव हिलने लगी,
हर प्राणी के मुख पर आश था,
चारों ओर अब बस प्रकाश था,

तभी शत्रु को सहयोग मिला,
सत्य के उस छोटे दीये को,
तूफ़ानी हवाओं, काली घटाओं ने
चारों दिशा से घेर लिया;

अंत तक लड़ता रहा वो,
उसे हिला ना सके,डिगा ना सके,
दृढप्रतिज्ञ, दृढ़संकल्प था वो,
सत्य दीप को, सब मिटा ना सके;

आखिरकार सत्य की विजय हुई,
अंधेरे को भागना पड़ा क्षेत्र से,
एक ने अकेले हराया,कइयों को
प्राप्त हुई जीत,यह हिम्मत से;

जीतता अंततः सत्य ही है,
कितनी ही बड़ी बुराई हो?
कितना भी कष्ट सहे मनुष्य,
जीतेगा,यदि साथ सच्चाई हो;

सुयश कुमार द्विवेदी
सहायक अभियोजन अधिकारी, दिल्ली