राजीव गांधी चाहतें तो मंदिर-मस्जिद विवाद का निकल सकता था “हल”…

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दिल्ली एनसीआर (जनमत) :-  राममंदिर-बाबरी विवाद  का निर्णय जल्द आने की उम्मीद है और अयोध्या में इसको लेकर तैयारियों का दौर भी जारी हैं. वहीँ दूसरी तरफ इस मुद्दे को  लेकर पूर्व गृह सचिव माधव गोडबोले ने रविवार को एक खुलासा किया। जो राजनितिक सरगर्मियां शुरू हो गयीं हैं.  वहीँ अपने बायाँन में गोडबोले ने कहा कि 1992 में बाबरी की सुरक्षा के लिए हमने उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव प्रेसिडेंट रूल पर अपनी शक्तियों को लेकर संशय में थे।6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बड़ी संख्या में कारसेवक इकट्ठा हुए थे। कारसेवा के दौरान इस ढांचे को गिरा दिया गया था। इस दौरान उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। गोडबोले 1992 में गृहसचिव के पद पर थे और उन्होंने “द बाबरी मस्जिद-राम मंदिर डायलेमा: एन एसिड टेस्ट फॉर इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन’ नामक किताब लिखी है।

गोडबोले के मुताबिक उस समय प्रदेश में कानून व्यवस्था को काबू में करने के लिए और किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए हमने पीएम राव को यह सुझाव दिया था की उत्तर प्रदेश में अनुच्छेद 355 लागू किया जाए, ताकि बाबरी मस्जिद की सुरक्षा के लिए केंद्रीय बलों को वहां भेजा जा सकें. फिर वहां राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सके। तब प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव अपनी शक्तियों को लेकर संशय में थे कि संविधान उन्हें इन हालात में राष्ट्रपति शासन लागू करने की इजाजत देता है, या नहीं। गोडबोले ने कहा- अगर राजीव गांधी कदम उठाते तो इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता था, क्योंकि उस वक्त दोनों पक्षों की राजनीतिक स्थिति मजबूत नहीं थी। समझौते की संभावना थी और समाधान को स्वीकार किया जा सकता था।

Posted By :- Ankush Pal