माया का दलित भाजपा के पाले में गया!… 

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लखनऊ (जनमत) :- बसपा का अघोषित साथ। बसपा ने 122 सीटों पर ऐसे उम्मीदवार खड़े किए, जो सपा के उम्मीदवार की ही जाति के थे। इनमें 91 मुस्लिम बहुल, 15 यादव  सीटें थीं। ये ऐसी सीटें थीं, जिसमें सपा की जीत की प्रबल संभावना थी। इन 122 में 64 से अधिक सीटों पर भाजपा आगे चल रही है। यहां हार-जीत का मार्जिन भी कम ही रहने की संभावना है।खुद को मुस्लिम सरपरस्त पार्टी की छवि से बाहर नहीं निकाल पाई। सपा के कई नेताओं, खासकर बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी ने जिस तरह से अफसरों को धमकाया। उससे अफसर कितना डरे, कह नहीं सकते। लेकिन बड़ी संख्या में वो हिंदू वोटर छिटक गए, जो सपा को वोट देने की सोच रहे थे।

मोदी-योगी ने लगातार हर चीज को हिन्दुत्व से जोड़ा। इसकी शुरुआत पहले चरण में ही अमित शाह ने कैराना से की थी। और आखिरी चरण में मोदी काशी में जिस तरह 3 दिन रुके, उससे वे ये साबित करने में सफल रहे कि वे ही हिन्दू शुभचिंतक हैं। यही कारण है कि मुस्लिमों के वोट नहीं मिलने के बावजूद रुझानों में भाजपा का वोट शेयर 42% है। पिछली बार 39% से भी 3% अधिक। वहीं बसपा का 12.7% वोट शेयर दिख रहा है, जो पिछली बार के वोट शेयर 22.9 से 10% कम है। इसका साफ मतलब है कि हिन्दू दलित मायावती का कोर वोट बैंक इस बार बड़ी संख्या में भाजपा में शिफ्ट हो गया।कुछ हद तक हां।

हालांकि इन दोनों सीटों पर काफी करीबी मुकाबला रहा, लेकिन ये दोनों मंदिर भाजपा को हिन्दुत्व का चेहरा और मजबूत करने वाले साबित हुए। अयोध्या की राम मंदिर वाली सीट और वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर वाली सीट में कड़ी टक्कर दिखाई दे रही है। विश्वनाथ मंदिर वाली सीट में काफी समय तक पीछे चले याेगी सरकार के मंत्री डा. नीलकंठ अब आगे हो गए हैं। पश्चिमी यूपी में जाट शहरी और ग्रामीण में बंट गए। सवर्णों में भी भेद रहा। दलित वोट पहली बार बसपा खेमे से भाजपा में शिफ्ट हुए। भविष्य की राजनीति के हिसाब से ये भाजपा का सबसे सकारात्मक पहलू है। ठीक इसी तरह सपा का माई में सबसे बड़ा भाग यादव भी घोषी और कामरिया दो भागों में बंट गया। इसका फायदा भाजपा को होता दिख रहा है।

PUBLISHED BY:- ANKUSH PAL..