सेठ छोटेलाल एकेडमी प्रशासन का तुगलकी फरमान….फीस नहीं तो परीक्षा नहीं….

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हमीरपुर (जनमत) :- आज के दौर में जब शिक्षा का व्यवसायीकरण पूरी तरह से हो चुका है वहीं दूसरी ओर कोरोना से आर्थिक तौर पर प्रभावित हुए लोगों के सामने भी बड़ी मुसीबत सामने आ गई है। रोज कमाने खाने वाला आम आदमी कोरोना से आर्थिक तौर पर परेशान होकर घर खर्च चला नहीं पा रहा है उसके सामने विद्यालयों में अपने अपने बच्चों की भारी भरकम फीस देना भी एक बड़ा जी का जंजाल बना हुआ है। दरअसल कस्बे के औडेरा रोड स्थित सेठ छोटेलाल एकेडमी प्रशासन पर तुगलकी फरमान का आरोप लगाते हुए स्कूल के अभिवावकों ने स्कूल परिसर मे जमकर हंगामा काटा। अभिवावकों का आरोप है बच्चों कि स्कूल प्रशासन द्वारा फीस जमा न करने के कारण परीक्षा नहीं देने दी जा रही है।

अभिवावकों का यह भी आरोप है इस कोरोना काल मे स्कूल में न ही पढ़ाई हुई है और न ही हो रही है तो वह पूरी फीस क्यों दें। यह भी कहना है कि कोरोना काल मे उनकी आर्थिक स्थिति भी गड़बड़ा गयी है जिससे वह पूरी फीस देने में असक्षम है। वहीं स्कूल प्रबन्धन का कहना है कि फीस हमारे लिए आवश्यक है बाकी हम कुछ नहीं जानते जो कोर्ट और शासन के आदेश हैं उन्हीं के अनुसार विद्यालय कार्य कर रहा है। वहीं स्कूल की प्रधानाचार्य का कहना है कि जो निर्णय प्रबन्ध समिति लेगी उस अनुसार वह कार्य करेंगी। इस दौरान अभिवावक नीरज मिश्रा ने बताया कि उनका बच्चा कक्षा 6 में पढ़ता है। उनके बच्चे की 5 माह की फीस जमा है आगे अर्द्ध वार्षिक परीक्षा से उनके बच्चे को वंचित किया जा रहा है। जिससे उसकी साल बर्बाद होने का खतरा है। वह पूरी फीस देने में असक्षम है।

प्रबन्ध समिति उनकी नहीं सुन रही है।  इसी के साथ ही एक और अभिभावक ऊषा श्रीवास्तव का आरोप है कि उनके बच्चों को जब पढाया नहीं गया तो फीस कैसे दें। प्रबन्ध समिति उनके बच्चे को परीक्षा न दिलबाकर बच्चे का भविष्य खतरे में डाल रहे हैं। अब सवाल यहां यह उठता है कि वर्षों से संचालित हो रहे ऐसे तमाम स्कूल जहां कोरोना के कारण अधिकांश महीनों में पढाई नहीं हुई है न ही अध्यापकों को पूरा वेतन मिला है। ऐसे में कोरोना से आर्थिक रूप से प्रभावित हुए अभिवावक फीस देने में असमर्थ प्रतीत हो रहे हैं। तो बच्चों के भविष्य के निर्धारण के लिए सरकार क्या कदम उठाएगी।